गोस्वामी तुलसीदास जी बृंदावन पहुंचे | अनोखी कथा
नंददास जी उन्हें आदर सहित कृष्ण मंदिर में ले गए। तुलसीदास जी ने शीश नवाने की अटपटी शर्त आराध्य के सामने रख दी। कहा, मैं तो अपने राम को खोज रहा हूं,
श्रीकृष्ण के राम-रूप को! बालहठ में पड़े तुलसीदास जी ऐसे रामभक्त बन गए जो गंगा में बैठकर गंगाजल खोजता है। लीला केवल भगवान ही करें, ऐसा जरूरी तो नहीं। भक्त भी करता है और भगवान उसका रस लेते हैं-
कहा कहैं छवि आपकी, भले बने हो नाथ।
तुलसी मस्तक तब नवे, धनुष-बाण लो हाथ।।
श्रीकृष्ण पुलकित होकर राममय हो गए। कृष्ण की मूर्ति राम की मूर्ति में बदल गई थी। दोनों में कोई भेद ही नहीं है तो कृष्ण में राम कैसे न दिखते तुलसी को..
गीता में अर्जुन से श्रीकृष्ण कहते हैं-
पवनः पवतामस्मि रामः शस्त्रभृतामहम्।
-गीता १०/३१
अर्थात, मैं पावनकर्ता में पवन और शस्त्रधारियों में राम हूं। राम ने जो किया और श्रीकृष्ण ने जो बताया, दोनों सर्वोत्कृष्ट हैं। मानव से महामानव बनने का यही मार्ग है!
राम कृष्ण दोउ एक हैं अंतर नहीं निमेश।
एक के नयन गंभीर हैं, दूजे चपल विशेष।।
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Harshit chaturvedi