1. सत् पुरुष ,
2. शठ पुरुष ,
3. खल पुरुष और 4 मूर्ख पुरुष ।
सबसे पहले सामने वाले की प्रकृति को पहचानने की आवश्यकता होती है फिर उनसे शास्त्रानुकूल ब्यवहार करने से जीवन सुखी रहता है। सबसे पहला है सत्पुरुष ,उनकी पहचान है संत ह्रदय नवनीत समान इसको पहचान कर उनसे सत्संग ही करना चाहिए । दुसरे हैं शठ इनकी प्रकृति होती है यथा शठ सुधरहिं सत्संगति पायी ,यानी जो सत् संगती पाकर सुधर जाए उसे सत्संग द्वारा सुधारने का प्रयत्न करें , तीसरे हैं खल ,
जो काहूकी सुनहि बढाही स्वास लेय जनि जूड़ी आयी , जो काहूकेँ देखें विपती , सुखी होंय मानों जग नृपती ।। ये खल हैं इनके लिए शास्त्राज्ञा है , खल परिहरहू स्वान की नाई । जैसे आवारा कुत्ते का तिरस्कार किया जाता है ऐसे उस खल की उपेक्षा कर देनी चाहिए उसकी बातों पर प्रतिक्रिया नहीं करनी चाहिए । चौथे हैं मूर्ख इनके लिए लिखा है , मूरख ह्रदय न चेत जो गुरु मिलै विरंचि सम । अर्थात् ब्रह्मा गुरु मिलजाए फिरभी जिनके विचारों में आचरणों में परिवर्तन न होपाये वह मूर्ख है अब ऐसे जीब से वहस करना उस मूर्ख के अंदर अपनी छवि खोजने के समान होगा । भाइयो अपने आस पास इनमे से कैसे लोग हैं इसको पहचानें और तादृश व्यवहार करें तो काफी शान्ति प्राप्त होगी ।
--विजयकृष्ण चतुर्वेदी
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Harshit chaturvedi