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यमुना पुत्र चतुर्वेदी
अभी तक हमने वैदिक आर्य संस्कृति के अंदर चतुर्वेदियों के उत्थान और चतुर्वेदी जाति का तर्क और अन्य ब्राह्मणों से चतुर्वेदियों की भिन्नता के कारणो का विवेचन किया ।
अब आगे मथुरा से सम्बन्ध विषयक जानकारी।
आर्यो ने सरस्वती के विलुप्त होने पर खुद को गंगा और यमुना के किनारे स्थापित किया और इसी क्रम में हमारे पूर्वजों ने ज्यादा दूर न जाकर मथुरा को ही अपना केंद्र बनाया जबकि अन्य ब्राह्मण गंगा से गोदावरी तक और उसके भी दक्षिण तक फैलते चले गए।
सरस्वती के बाद वेदों में गंगा का पर्याप्त विवरण मिलता है जबकि यमुना जी का कतिपय और संक्षिप्त उल्लेख ही है।
संभवतः यही कारण रहा कि गंगा के किनारे अनेक तीर्थ रूद्र प्रयाग से लेकर ऋषिकेश, हरिद्वार, बनारस , इलाहबाद और गंगासागर और भी धार्मिक स्थल विकसित और पल्लवित हुए जबकि यमुना पर कोई तीर्थ नहीं था ।
उस काल में तीर्थ ही ब्राह्मणों का आश्रय और रोजगार प्रदाता होता था अतः चतुर्वेदियों ने अपनी मेधा और प्रयास से मथुरा को तीर्थ के रूप में स्थापित किया ।
इस प्रकार "चतुर्वेदी' ही यमुना तीर्थ के "आदि पुरोहित" हुए और यह मान्यता वैदिक काल से लेकर अद्यतन जारी है।
यँहा यह मिथक भी समझ लेने जैसा है कि विश्राम घाट को तीर्थ इसलिए माना गया क्योकि श्री कृष्ण ने कंस बध के बाद यँहा विश्राम किया था।
यह एक बहु प्रचलित कथा है किन्तु मुझे यह तर्क हास्यास्पद और बचकाना लगता है ।
अगर कृष्ण के सिर्फ विश्राम की वजह से यह तीर्थ हो गया तब अन्य स्थान तीर्थ क्यों नहीं हो गए। ऐसा तो संभव नहीं है कि श्रीकृष्ण और कँही बैठे ही न हो।
वास्तविकता यह है कि चूँकि यह "तीर्थ" था इसीलिये श्री कृष्ण ने यँहा विश्राम किया। विश्राम का एक अर्थ यह भी होता हैकि जँहा श्रम शांत हो जाय।
और कंस वध के उपरांत श्री कृष्ण न केवल शारीरिक रूप से बल्कि मानसिक रूप से भी बहुत उद्वेलित थे। मथुरा की राज सत्ता किसे दें? व्यवस्था समुचित कैसे हो ?और खुद के मामा की हत्या का अपराध बोध भी कँही न कँही श्री कृष्ण के मन में रहा होगा।
जब श्री कृष्ण इस उहापोह में थे तब उन्हें "चतुर्वेदियों' ने जो कि कंस के विरुद्ध श्रीकृष्ण के साथ थे तीर्थ की महत्ता बतलायी होगी ऐसा मेरा अभिमत है।
और इस तीर्थ पर ही श्री कृष्ण अपने मन मस्तिष्क को शांत कर पाये और परम शांति को विश्राम को उपलब्ध हुए इसी कारण संभवतः ये तीर्थ "विश्राम तीर्थ" के नाम से प्रसिद्ध् हुआ।
एक और मिथक भी इसकी पुष्टि करता है वह है विश्राम तीर्थ पर यमराज का मंदिर। यम काल का नियंता है और अहर्निश श्रम करता रहता है बिना रुके। और ऐसे अनुशाषित और सतत् कर्मरत का भी श्रम जँहा शांत हो गया हो वह विश्रान्त ही हो सकता है।
यम मथुरा तीर्थ विश्रामघाट पर रुके यह मिथिकीय कथा सर्व विदित है ही।
मथुरा को वैदिक संस्कृति के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित करने का श्रेय चतुर्वेदी ब्राह्मणों को ही है और यह तथ्य बौद्ध, महावीर जैन से लेकर स्वयं आदि शंकराचार्य तक सभी ने माना। सभी आचार्यो ने अपने अपने मत स्थापित करने हेतु मथुरा में विशेष प्रयास किया ।
मथुरा बौद्धों का एवं जैनियों का भी प्रमुख केंद्र रहा है यह तथ्य ऐतिहासिक रूप से सुस्पष्ट है।
इसके बावजूद बौद्ध अथवा जैन वैदिक धर्म को मथुरा से हिला नहीं पाये क्योंकि मथुरा का झंडा और नेतृत्व चतुर्वेदियों के हाथ में था और जिनकी मेधा का, प्रज्ञा का लोहा सभी मानते थे।
वर्तमान समय में करीब 500 साल पूर्व श्री बल्लभाचार्य जी ने जब अपना खुद का पुष्टि मार्ग संप्रदाय चलाया तब उन्होंने भी चतुर्वेदियों को यमुना का तीर्थ पुरोहित माना।
श्री बल्लभाचार्य जी अंतिम आचार्य है जो अपना खुद का संप्रदाय स्थापित कर पाये।
उनके उपरांत कोई भी अपना संप्रदाय स्थापित नहीं कर पाया क्योकि नया संप्रदाय चलाने के लिए प्रस्थान्त्रयी पर टीका लिखनी होती है।
मै अपने पहले ही लेख में कह चूका हूँ कि चतुर्वेदी यमुना के योनिजा पुत्र नहीं है और न ही सिर्फ जीविकोपार्जन की वजह से यमुना पुत्र है । अब अन्य कारणों पर विचार करते है ।
शास्त्रों में 12 प्रकार के पुत्र माने गए है किलष्टता की वजह से श्लोक नहीं लिख रहा हूँ सिर्फ हिंदी रूपांतर ही लिखा है।
ये पुत्र है
1. अपना पुत्र
2. लड़की का पुत्र
3. अपनी स्त्री से दूसरे पुरुष द्वारा उत्पन्न
4. अविवाहित कन्या से उत्पन्न
5. पुनः विवाहित स्त्री से उत्पन्न
6. दूसरे को गोद दिया हुआ
7. माता पिता से ख़रीदा हुआ
8. शुभ गुणों के कारण बनाया गया
9. अनाथ होने अथवा त्यक्त होने के कारण बना हुआ
10.विवाह समय में गर्भवती स्त्री का
11.अपनी स्त्री से ऐसे पुरुष द्वारा उत्पन्न किया गया पुत्र जिसका पता न लगाया जा सके
12.माँ अथवा बाप से त्यक्त जो दूसरों से पाला गया हो।
चतुर्वेदी यमुना के सम्बन्ध में आठवें प्रकार के पुत्र यानि शुभ गुणों के कारण बनाये गए पुत्र है और इसका तर्क यह है क्योकि यमुना को तीर्थ रूप में स्थापित चतुर्वेदियों ने किया न कि अन्य ब्राह्मणों ने जैसा पहले लेख में बता चुका हूँ।
जीविकोपार्जन भरण पोषण के इतर चतुर्वेदियों के यमुना पुत्र होने का यही हेतु है ऐसा मेरा मत है और अन्यथा मानने का कोई कारण या औचित्य मुझे लगता नहीं है।
यह तर्कणा इस मिथिकीय कथा से भी सिद्ध होती है जो श्रीमद् बल्लभाचार्य के साथ घटी।
अनुश्रुति है आचार्य बल्लभ ने बृज 84 कोस की परिक्रमा की और पूरी करने के उपरांत यमुना जी से पूंछा क्या परिक्रमा पूर्ण हुई यानि अपने अभीष्ट को प्राप्त हुई तब यमुना ने इंकार में उत्तर दिया और आचार्य को लगा कि कँही कोई त्रुटि हुई है अतः दूसरी परिक्रमा की और पूरे होशपूर्वक सावधानी सहित की ताकि कोई त्रुटि न हो।और कथा कहती है पूर्णता के बाद जब पुनः आचार्य बल्लभ ने यमुना जी से पूंछा तो पुनः इंकार में उत्तर मिला।
इस बार आचार्य ने प्रति प्रश्न किया श्री यमुना जी से और कारण जानना चाहा क्योंकि आचार्य को संतुष्टि थी कि कोई त्रुटि नहीं हुई है तब क्या कारण है अपूर्णता का और बिना कारण जाने पुनः परिक्रमा करना व्यर्थ होगा और अभीष्ट सिद्ध नहीं होगा।
तब प्रश्न के उत्तर में आचार्य श्री बल्लभ से स्वयं यमुना ने कहा कि तुम मेरे शुभ लक्षणों से युक्त चतुर्वेदी पुत्रो के सानिद्ध्य और मार्ग दर्शन में यात्रा करो ।
और सिर्फ चतुर्वेदी ही क्यों?? इसका कारण है यमुना के तीर्थ पुरोहित चतुर्वेदी थे और आज भी है।
पुरोहित शब्द बना पुरः+हितम् जिसका अर्थ होता पूरी तरह हित साधन करने वाला अतः तीर्थ पुरोहित वह हुआ जो तीर्थ का हित पूणरूपेण संरक्षित करने में न केवल समर्थ हो वरन् करता भी हो।
और चतुर्वेदी तो इस तीर्थ को स्थापित करने वाले थे अतः स्ववाभिक रूप से इसके संरक्षक थे और इसीलिए तीर्थ पुरोहित भी।
जैसे धर्म की रक्षा करने वाले की धर्म रक्षा करता है "धर्मो रक्षति रक्षत" के सूत्र अनुसार उसी प्रकार चतुर्वेदियों से रक्षित यमुना तीर्थ ने प्रतियुत्तर स्वरूप चतुर्वेदियों का भरण पोषण किया और इस प्रकार रक्षा भी की।
मेरी समझ में यही कारण है हेतु है चतुर्वेदियों के यमुना पुत्र होने का।
यमुना और चतुर्वेदी का सम्बन्ध अन्योन्याश्रित है यमुना पर तीर्थ की कल्पना और चतुर्वेदियों की यमुना से इतर कल्पना ही संभव नहीं है।
मुझे जैसा लगा और जैसा मैने स्वाध्याय से समझा वह आप सभी से साझा किया इसके इतर कुछ और किसी अन्य को लगता हो तब वह साझा करने की कृपा करें ।
मैने मिथिकीय और इतिहासिक तथ्यों को समन्वित करने का प्रयास किया है आशा है कुछ लाभ सभी को हुआ होगा।
विनोदम्
Working as software Engineer
behad sundar vivaran diya aapne Harshit
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