07 September 2016

श्री लाडली लाल प्रिया-प्रियतम की आठों सखियों का विवरण


श्रीराधा विजयते नम्:

श्री लाडली लाल प्रिया-प्रियतम की आठों सखियों का विवरण इस प्रकार है । ....
1: - ........... ललिता जी ............
ललिता जी गोरे रगं की है ये नेह की रीति - भाति को जानने वाली है । मोरपखं की नीली साडी पहनती है , प्रिया - प्रियतम को पान प्रदान करती रहती है , यह सखी हर कला मे निपुण है , ललिता जी , प्यारी जी की परम प्रिय सखी है , कुंजन मे ललिता जी प्यारी जू को गेंद का खेल खिलाती है तो कभी वन विहार नौका विहार के लिए ले जाती है । .....

2: - ......... विशाखा जी .........
विशाखा सखी तारामडंल की साडी पहनती है । ये सुगधिंत चीजों स"े बने चदंन का लेप करती है , चदंन लगाती है , हर सखी प्रिया-प्रियतम को सुख देने मे लगी रहती है । प्यारी जी के अंगों का स्पर्श पाकर सखियॉ बहुत सुख प्राप्त करती है । यह सखी श्री श्यामा जी के नित्य सानिधय मे रहने वाली स्वामिनी की प्रिय सखी है । विविध रंगों के वस्त्रो का प्रिति-पूर्वक चयन करके प्रिया ज् को धारण कराती है , ये छाया की तरह उनके साथ रहते हुए उनके हित की बाते करती हैं । .....

3: - .......... चित्रा सखी .........
चित्रा सखी पीली साडी पहनती है , प्यारी जी प्रियतम की सेवा मे फल शरबत लेकर खडी रहती है। सॉय समय चार बजे प्रिया- प्रियतम का जगाने का समय होता है तो युगलवर की सेवा मे फल , शरबत , मेवा लेकर आती है । चित्रा सखी युगल की अति मन भावॅती सखी है युगल की छण-छण की रुचियों को पहचानने वाली चित्रा जी सदा सेवा मे संलग्न रहती है। ये स्वरणिम , कांतिमय ,पीले वस्त्र धारण करती हैं .....

4: - ......... इदुंरेखा सखी .........
इदुंरेखा जी हरी साडी पहनती है, श्रंगार सेवा गजरे बनाती है एवं प्रिया-प्रियतम को प्रेम कहानी सुनाती है। ये आठों सखियॉ हर कला मे चतुर व निपुण है ,प्यारी जी किसी भी सखी को कुछ भी कोई भी आज्ञा दे देती है । नृत्य गायन सेवा कला मे भी निपुण है। यह सखी बड़ी अत्यन्त कुशल एवं बडी सुझ बूझ वाली है, ये लाल प्रिया मे रसोदीपन विभाव भी प्रकट करती है। इदुंरेखा जी प्रतिछण प्रियतम लाल को वशीकरण एवं मोहन यंत्रो की शिक्षा देती रहती है। इन सखी को चित्रलेखा भी कहते है ।

5: -. ........ चपंकलता सखी ........
चपंकलता जी प्रिया-प्रियतम के लिए भोजन बनाती है । जो भी युगलवर को रुचिकर हो ,इनकी ही रुचि के अनुसार चौबिस वयंजन ओर छपपन भोग बना कर रसोई सेवा मे लगी रहती है। जब युगलवर सिंहासन पर विराजते है तो यह सखी चॅंवर सेवा मे खडी रहती है। चंपकलता जी का अंग वर्ण पुष्प-छटा भान्ति है।

6: - .......... रंगदेवी सखी .........
रंगदेवी जी प्यारी जी की वेणी गूंथना श्रंगार करना ओर प्यारी जी के नैनो मे काजल लगाती है। रंगदेवी सखी गुलाबी साडी पहनती है ,वैसे तो सखियॉं तरह-तरह के रंगों की साडियां पहने होती है । युगल के विविध आभूषणो को सावधानी पूर्वक संजो कर रखती है , ह्रदय मे गाढी प्रिति लिये सारी आभूषण सदा सेवा मे लेकर खडी रहती है । ....

7: - ......... तुंगविधा सखी ........
तुंगविधा जी लाल साडी पहनती है । युगलवर के दरबार मे नृत्य करना गायन करना प्रिया-प्रियतम की सेवा मे रहती है। ये सब आठों सखियॉं हर छण प्रिया - प्रियतम की सेवा मे रहती है। प्यारी जी की आज्ञा की प्रतीक्षा मे रहती है। ....

8 : - .......... सुदेवी सखी ........
सुदेवी जी बसंती रंग की साडी पहनती है । यह सखी प्यारी जी के नैनो मे काजल लगाती है । ओर प्रिय - प्रियतम की नजर उतारती है ।
ये सब आठों सखियॉं हर क्षण प्रिया-प्रियतम के मुख मंडल तथा उनके रुप माधुरी को देख-देख कर जीती है। प्रिया-प्रियतम का श्रीमुख चंद्र देखना ही इनका आहार है , जीवन है ।
...... श्री राधे ......
जय श्रीकृष्ण 

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Harshit chaturvedi