आज अपने पैसे और बहुमूल्य समय दोनो को मिट्टी मैं मिला रहे वल्लभ को स्वप्न मैं आदेश हुआ मा श्री यमुना जी से की तू ब्रज मैं जा वो भी मथुरा और विश्राम घाट वहाँ आपको प्रभु प्राप्ति सम्भव है सो वल्लभ मथुरा पधारे और श्री मद गोकुल भी उन्ही ने बाद मैं बसाया पर जब श्री यमुना अस्टक की रचना भी उन्होने ही की तो क्या लिखते है विशुद्ध मथुरा तटटे ध्रुव पाराशर...ऐसा क्यों क्योंकि यमुना जिसे वैष्णव की यमुना माँ कहते वो सिर्फ मथुरा के 25 घाटों तक ही सीमित है आगे पीछे कालिँद्रि (यमुना )माना गया है और हमारे पूर्वज भी जब गुजरात से निकलते तब भी ये ही बात कहते की चालौ यमुना पान करी आय्ये ना की गीर्राज या गूकूल वृंदावन हो आये ऐसा क्यू?वो यू की आपणी धर्म किताबों मैं भी चौबाजी को ही प्रमाण के साथ यमुना पूत्रा भी कहाँ और वो ब्रह्म्मन भी है.
आज वैष्णव अपनी काया को सुख देने हेतु जो की घर मैं भी मिलता यात्रा और तप तो कष्ट सहकर ही फलित होती आज गीर्राज और गोकुल भग रहा जबकि रहने के स्थान तो मथुरा मैं भी है पर ये बाट अलग है की चौबाजी मस्का ना लगाते और खुसाम्दीद भी नही होती और जो ऐसा होता वो चौबा नही हो सकता और जतीपुरा और वृंदावन मैं ठाकुर और दुध का काम करने वालो को वैस्नवौ की मेहरबानी ने पंडाभी बना दिया तो क्या गाय का खाना गधेडे नही कहाँ रहे और खिलाने वाले भी क्या अपने पूर्वजों की राह छोड़कर गलत रास्ते पर नही है क्या ?क्यू आज भी जय जय 99% मथुरा से ही नियम लेके लिली परकम्मा शुरू करते और क्या 30 साल पहले के कोई लेख आपका या आपके गुरुदेव का किसी के भी पास है.क्या आज उसी युग की शुरुआत हो चुकी है
जो वल्लभ बोल गयी की पुष्टि मैं ही पहले कलयुग का प्रवेश है. गौर की जगह आज ठाकुर जाटों और अन्य नीचे लोगो ने लेलि तीर्थ की जगह मथुरा फरी आय्ये ने लेलि.तो क्या गुजराती उसमे भी बनिया सबसे अक्ल्दार कौम होती हुऐ ये गलत पैसा और समय खराब ना कर रही.भाई पैसा और टाइम दोनो कीमती है ईसका सदुपयोग करो सड़क पर डाले हुऐ बीज से जैसे पाक नही हो सकती ऐसे ही कुपात्र को दान भी उसके और.अपने दोनो के विनाश.का कारण बनते है
आज पंजाब दिल्ली के लोगो को तो सुविधा चहिए क्योंकि वो वृंदावन गीर्राज मैं पिकनिक मनाने आते है वैष्णव शायद इस सोच से नही आते अरे सुविधा तो आप के घर मैं भी बहुत है धर्म की जगह पर धर्मानुसार ही सब काम.करने चहिए ऐसा मेरा मानना है की अपने इष्ट और ब्रज को घूमना ना समझ के बडिलो का आशीर्वाद और प्रभु का उपकार ही समझना चाहिए जो ऐसे सुंदर वैष्णव कुल मैं जन्म दिया अब उसको पैसे से समझे या धर्म से सोच अपनी अपनी है.ब्रज पूरा एक है जैसे शरीर पूरा.एक है पर खाना मुँह से ही खा सकते नाक आँख से नही यानी अपने पूर्वज बहुत अकल वाले थे जहाँ का जो महत्व समझा वो ही किया अब हम.उनसे ज्यादा अक्ल्दार हो गये है या धर्म को अपनी सुविधा अनुसार चलाने की सोच रहे ये बाते किसी को भी व्यक्तिगत नही है धर्म समझने हेतु है बस सो गलत ना समझे.जय श्री कृष्णा--- भूपेन्द्र नाथ चतुर्वेदी
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Harshit chaturvedi