महामृत्युंजय मन्त्र
महा मृत्युंजय मन्त्र अर्ध मंत्र का उचारण क्यों करते है ?
यद्यपि वेद के सभी मंत्र बहुत महत्वपूर्ण है किन्तु इनमें से दो मंत्र "गायत्री" औ "महामृत्युंजय" अतिशय प्रसिद्ध् है। महा मृत्युंजय यजुर्वेद के तीसरे अध्याय में है और पूर्ण भाग इस प्रकार है। "त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पुष्टि वर्धनम्। उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीयमामृतात्।" 'त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिम् पति वेदनम्। उर्वारुकमिव बंधनादितो मुक्षीय मामुतः।।" अब प्रश्न यह था कि प्रथम भाग ही सामान्यतः प्रचलन में है और द्वितीय भाग नहीं। मित्रो यजुर्वेद में 40 अध्याय है जो पूर्व विंशति औ उत्तर विंशति के नाम से भी प्रसिद्ध् है। इन 40 अध्यायों में कुल 1975 कंडिका है और हरेक कंडिका में एकाधिक मन्त्र है। सामान्यतः गलती यह होती है कि कंडिका और मन्त्र को एक मान लिया जाता है । जबकि ऐसा है नहीं , कंडिका और मंत्र पर्याय नहीं है। उपरोक्त के साथ भी ऐसा ही त्रुटि हुई है। शुक्ल यजुर्वेद के अध्याय 3 की 60 वी कंडिका में दो मंत्र है और प्रथम मन्त्र को ही महा मृत्युंजय मंत्र कहते है और यही प्रचलन में है। द्वितीय मन्त्र का अभिप्राय भिन्न है । पहला मंत्र सार्वभौमिक है स्त्री व् पुरुष दोनों के लिए है जबकि दूसरे मंत्र का प्रयोग विशेष रूप से सिर्फ स्त्रियों के लिए है। यही कारण हैं पहले सार्वभौमिक मंत्र भाग का प्रचलन अधिक है। यह"मृत्युंजय" या "संजीवनी" मंत्र के नाम से भी प्रसिद्ध् है। मन्त्रो के अर्थ नहीं दिए है। कॉपी, कट, पेस्ट वाले शब्दार्थ अन्यत्र विस्तार के साथ पहले ही से ग्रुप पर उपलब्ध है। अर्थ और उसके अभिप्राय जो मैंने समझे कभी और लिखूंगा अन्यथा विस्तार हो जायेगा। मन्त्र में ॐ और बीज अक्षरों का प्रयोग बाद में तांत्रिकों ने जोड़ दिया है और इस प्रकार मंत्र की शक्ति को वृद्धिगत कर दिया है। परंतु साथ ही यह बताना भी मित्रो मै आवश्यक समझता हूँ कि ये संहिता के भाग नहीं है। एक और विस्मित करने वाला तथ्य बताता हूँ कि पूरे यजुर्वेद में एक भी मंत्र नहीं है जो ॐ से शुरू होता हो ,मृत्युंजय भी नहीं। अब ऐसा क्यों है? इस पर जो मैंने समझा वह कभी और चर्चा करूँगा मैंने स्वाध्याय से जो भी समझा और जो मुझे युक्ति सम्मत लगा वह लिखा है। मेरा कोई मताग्रह नहीं है कि यही इतमित्थं है।
जय श्री कृष्ण हमारे यहाँ चार वेद हैें ,प्रत्येक मे सहस्राधिक मंत्र है उनमे से त्रयंबकम मंत्र ऋग्वेद , अथर्ववेद , कृष्ण यजुर्वेद एवं शुक्ल यजुर्वेद मे मिलता है। उन सब मे सिर्फ शुक्ल यजुर्वेद मे ही इस मंत्र के दो पाद है, बाकी सभी मे एक ही पद है। प्रमाण के लिए ऋग्वेद के एक सूक्त का चित्र साथ मे संलग्न किया कर रहा हूँ । इसी लिए एक ही पाद का जप किया जाता है, और वो अधुरा भी नही माना जाता ।
ReplyDeleteNote (यजुर्वेदकर्मकाण्डीय ग्रंथ है श्रौतयज्ञो मे पहला भाग यजमान बोलते है अग्नि के समक्ष ओर दुसरा भाग यजमानपत्नि दक्षिणाग्नि के पीछे।) ------
2. महामृत्युंजय मन्त्र 3 मन्त्रो से मिल कर बना है जैसा की मेने पहले भी पोस्ट की थी ।
त्रयम्बकंय्यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम् ।
उर्व्वारुकमिव बन्धनान्न्मृत्त्योर्म्मुक्क्षीय मामृ तात् ।
त्रयम्बकंय्यजामहे सुगन्धिम्पतिवेदनम् ।
उर्व्वारुकमिव बन्धनादितो मुक्क्षीय मामुत-:।।
रुद्री के 6 अध्यायः में 5 वा मन्त्र है ।उपरोक्त मन्त्र के ऊपर सब था । दुसरे वेदों में केवल ऊपर का आधा ही मन्त्र पूरा मन्त्र है ।।
1) त्र्यक्षर मृत्युंजय मन्त्र ॐ ह्रौं जूं: सः जिसके कहोल ऋषि है।
2) त्र्यम्बक मंत्र त्रयम्बकंय्यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारुकमिव बन्धनान्न्मृत्त्योर्म्मुक्क्षीय मामृतात्।।
याके ऋषि वशिष्ठ है । अब इस मन्त्र को आधा क्यों लिया ये वशिष्ठ जी ने ? क्योकि उन्होंने ये आगे का हिस्सा ही नहीं लिया है , ये आधा ही नहीं पूरा मन्त्र है । नीचे प्रति संलग्न है ।
3) महामृत्युंजय मन्त्र
ॐ ह्रौं जूं: सः भूर्भुवः स्वः त्रयम्बकंय्यजामहे सुगन्धिम्पुष्टिवर्द्धनम्।
उर्व्वारुकमिव बन्धनान्न्मृत्त्योर्म्मुक्क्षीय मामृतात्।
भूर्भुवः स्वरों जूं सः ह्रौं ॐ इसके ऋषि वामदेव कहोल वशिष्ठ 3 है । इससे तात्पर्य ये है कि ऊपर के दोनों मंत्र मिला कर ही तीसरा मन्त्र बना है । आनन्द ( नन्दा )
Parivednm wala mantar kya mai manpsand pati paane ki kamna hetu jao skti hoon
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