03 March 2022

एक सदगृहस्थ सेठ तीर्थयात्रा के लिए | अनोखी कथा

 

एक सदगृहस्थ सेठ तीर्थयात्रा के लिए 


एक सदगृहस्थ सेठ तीर्थयात्रा के लिए | अनोखी कथा


एक सदगृहस्थ सेठ तीर्थयात्रा के लिए रवाना हुए।उनके अत्यंत करीबी मित्र ने उनसे कहा,"भैय्या,

तुम्हें जगह-जगह संत -महात्मा मिलेंगे।जो संत स्वयं शांत व संतुष्ट दिखाई दें,उनसे मेरे लिए शांति और प्रसन्नता ले आना,चाहे उसकी जो भी कीमत चुकानी पड़े।"सेठ जिस तीर्थ में पहुंचते,

वहां देखते कि ज्यादातर साधु स्वयं अशांत हैं।वे तीर्थयात्रियों से अपेक्षा करते कि कुछ-न-कुछ उन्हें भेंट किया जाए।ऐसे संत लोगों से कहा करते कि तीर्थ में किया गया दान हजारों गुना पुण्यदायक होता है।तीर्थयात्रा के अंतिम चरण में सेठ को गंगा तट तट पर शांत मुद्रा में बैठे एक संत दिखाई दिए।

उनके चेहरे पर मस्ती का भाव था।वह भगवान की प्रार्थना कर रहे थे।सेठ ने उन्हें प्रणाम करने के बाद कहा," महाराज,मेरे एक मित्र ने कहा था कि किन्हीं पहुंचे हुए संत से शांति व प्रसन्नता प्रदान करने वाली औषधि लेते आना।

मुझे केवल आप ही ऐसे संत मिले हैं,जिन्हें देखकर भरोसा हुआ है कि आप वह औषधि दे सकते हैं।संत कुटिया में गए और अंदर से लाकर एक कागज की पुड़िया सेठ को थमा दी और बोले,इसे खोलना नहीं और बंद पुड़िया मित्र को दे देना।घर लौटकर सेठ ने पुड़िया मित्र को थमा दी।

कुछ ही दिनों में उसने अनुभव किया कि मित्र के जीवन में आमूल -चूल परिवर्तन आ गया है।

तब सेठ ने पुड़िया की औषधि के बारः में मित्र से पूँछा।मित्र ने वह पुड़िया सेठ को थमा दी।उसमें लिखा था,

"संतोष और विवेक सुख -शांति का एकमात्र साधन होता है।"

    यही एकमात्र औषधि है,जो सुखमय-शांतिमय जीवन की गारंटी होता है।


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Harshit chaturvedi