शंकराचार्य अनूठी प्रतिभा
आदि शंकराचार्य अनूठी प्रतिभा संपन्न आध्यात्मिक विभूति थे। उन्होंने उपनिषदों का भाष्य किया और अनेक प्रेरणादायक पुस्तकों की रचना की।देश भर में भ्रमण कर वह उपदेशों से लोगों को मानव जीवन सफल बनाने की प्रेरणा दिया करते थे।हिमालय यात्रा के दौरान एक निराश गृहस्थ ने उनसे पूछा,"सांसारिक दुखों के कारण मैं आत्मदाह (आत्महत्या)
कर लेना चाहता हूँ।"शंकराचार्य जी ने कहा,"यह मानव जीवन असीम पुण्यों के कारण मिलता है।निराश होने के बजाय केवल अपनी दृष्टि बदल दो,दुख व निराशा से मुक्ति मिल जाएगी।
कामनाएं अशांति का मुख्य कारण हैं।कामनाओं को छोड़ते ही अंधिकार समस्याएं स्वतः हल हो जाएंगी।संयमित व सात्विक जीवन बिताने वाला कभी दुखी नहीं हो सकता।"साधनापंचम में उन्होंने लिखा भी है;
"शांत्यादि परचीयताम्"
यानी सहनशीलता और शांति ऐसे गुण हैं,जो अनेक दुखों से दूर रखते हैं।
इसके साथ ही गर्व व अहंकार का सदा परित्याग करना चाहिए।
धन से कई बातों का भले ही समाधान होता है,किंतु उससे शांति की अपेक्षा नहीं करनी चाहिए।
वृद्धावस्था में जीने की आशा रखना,भगवत भजन में मन न लगाना,सांसारिक प्रपंचों में फंसे रहना मूढ़ता का ही परिचायक है।
ज्ञानी और विवेकी वह है,जो भगवान की भक्ति में लगा रहता है।
आपका पोस्ट ज्ञानवर्धक के साथ साथ सनातन संस्कृति का पोषक भी है।🙏
ReplyDeleteThanks
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