संस्कृत भाषा में विवेक का अर्थ होता है- "अलग- अलग करना ( समझना )।
दो मिली हुई वस्तुओं को अलग- अलग करने या समझने की कला को विवेक कहते हैं ।इसमें सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है- हंस ।जिसकी प्रसिद्धि ही नीर-क्षीर-"विवेकी"
दो मिली हुई वस्तुओं को अलग- अलग करने या समझने की कला को विवेक कहते हैं ।इसमें सबसे प्रसिद्ध उदाहरण है- हंस ।जिसकी प्रसिद्धि ही नीर-क्षीर-"विवेकी"
के नाम से है,वह मिले हुए दूध और पानी को अलग-अलग कर देता है- ऐसा माना जाता है ।अतः "मिलित वस्तुओं की अलग- अलग जानकारी करके समझना - विवेक कहलाता है-शब्दार्थ की दृष्टि से ।
दार्शनिक धरातल पर इसके अनेक रूप देखने मिलते है, पर इसके मूल शब्दार्थ को साथ लेकर ही ।
वेदान्त के अनुसार नित्य-और अनित्य वस्तु का भेद समझ जाना विवेक है ।
योग और सांख्य में प्रकृति- पुरुष का पार्थक्य ज्ञान विवेक कहलाता है ....
सब दर्शनों की चर्चा सम्भव नहीं है, पर विचार सभी दर्शनों में है इस पर ।
विवेकी हो जाने की पहचान ये है कि दोषों का त्याग और गुणों का ग्रहण हम बिना किसी की प्रेरणा या सहायता के अपने आप करने लगें ।
दार्शनिक धरातल पर इसके अनेक रूप देखने मिलते है, पर इसके मूल शब्दार्थ को साथ लेकर ही ।
वेदान्त के अनुसार नित्य-और अनित्य वस्तु का भेद समझ जाना विवेक है ।
योग और सांख्य में प्रकृति- पुरुष का पार्थक्य ज्ञान विवेक कहलाता है ....
सब दर्शनों की चर्चा सम्भव नहीं है, पर विचार सभी दर्शनों में है इस पर ।
विवेकी हो जाने की पहचान ये है कि दोषों का त्याग और गुणों का ग्रहण हम बिना किसी की प्रेरणा या सहायता के अपने आप करने लगें ।
मुझे इतना ही समझ आया ,जो संक्षेप में निवेदन किया।
लिखते लिखते निर्धारित सभय सीमा से 7 मिनिट ज्यादा हो गये- तदर्थ क्षमा याचना के साथ सभी महानुभावों को नमन ।सभी के विचार पढ़कर आनन्द हुआ
सादर
(धीरेन्द्र चतुर्वेदः )
लिखते लिखते निर्धारित सभय सीमा से 7 मिनिट ज्यादा हो गये- तदर्थ क्षमा याचना के साथ सभी महानुभावों को नमन ।सभी के विचार पढ़कर आनन्द हुआ
सादर
(धीरेन्द्र चतुर्वेदः )
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Harshit chaturvedi