13 August 2016

भीष्म चरित्र व्यास जी के अनुसार महाभारत




व्यास जी के अनुसार महाभारत की युग परिवर्तनकारी घटना अनेक महत्वपूर्ण कारणभूत् घटनाओं का परिणाम थी। मेरे विचार से ये घटनाएं इस प्रकार हैं :-

1- राजा महाभिष को ब्रह्माजी के शाप के कारण उन्हें पृथ्वी पर शान्तनु के रूप में उत्पन्न होना पड़ता है।

2- वसुओं को वशिष्ठजी का शाप जिसके कारण उन्हें भी पृथ्वी पर उत्पन्न होना पड़ता है और जिस हेतु गंगा को मानवी रूप धारणकर उन्हें जन्म देना पड़ता है और उनका उद्धार करना पड़ता है। भीष्मजी का जन्म भी इसी कारण से हुआ था।

3- शान्तनु द्वारा आठवें शिशु को प्रवाहित करते समय गंगा की भर्त्सना और देवव्रत बालक की रक्षा।

4- दाषराज की शान्तनु के समक्ष रखी गई अपनी पुत्री सत्यवती के विवाह की अनुचित शर्त कि इसका पुत्र ही आपके बाद कुरूदेश का राजा बने।

5- भीष्म द्वारा की गई राज्यत्याग तथा ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा ।

6- चित्रांगद और विचित्रवीर्य की असामयिक मृत्यु ।

7- व्यासजी द्वारा नियोग से गर्भाधान।

8- पाण्डु की किन्दम ऋषि के शाप से मृत्यु।

9- भीष्म द्वारा गांधारराज सुबल की पुत्री गांधारी से धृतराष्ट्र का विवाह जिसके कारण शकुनि का पदार्पण हस्तिनापुर में हुआ।

10- द्रुपद द्वारा बालसखा द्रोण का अपमान जिसके कारण द्रोण का आगमन हस्तिनापुर में हुआ।

11- दुर्वासा ऋषि का कुन्ती को देव आवाह्न का मंत्र जिससे पाण्डवों का जन्म संभव हुआ और कर्ण का भी।

12- रंगशाला में वीरकर्ण का अपमान जिसके कारण वह सदा के लिये दुर्योधन के पक्ष में चला गया।

13- इन्द्रप्रस्थ में राजसूय यज्ञ में अपनी समृद्धि का पाण्डवों द्वारा प्रदर्शन और राजभवन में जल में गिरने पर भीम और द्रोपती द्वारा दुर्योधन का उपहास।

14- द्यूतसभा में द्रौपदी का अपमान।

15- दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण के पांच गांव की मांग को ठुकराते हुए यह कहना कि बिना युद्ध के मैं सुई की नोक के बराबर भूमि भी नहीं दूंगा।

             इन कारणभूत घटनाओं में भी चार घटनाएं मेरे विचार से सर्वप्रमुख है जिन्होंने संपूण महाभारत की दिशा बदल दी। वे हैं :-

1- दाषराज की पुत्री के विवाह के लिए की गई शर्त।

2- पाण्डु को किन्दम ऋषि का शाप।

3- द्यूत क्रीड़ा और

4- दुर्योधन द्वारा श्रीकृष्ण का प्रस्ताव अमान्य करना।

     इन चार घटनाओं के अभाव में महाभारत का भयानक युद्ध होना असंभव था। भीष्म द्वारा प्रतिज्ञाएं न की जाती तो उन्हीं के वंशज राज्य करते।
पाण्डु शापग्रस्त न होते तो लगातार राजा बने रहते।
अंधे धृतराष्ट्र को राज्यश्री का लोभ नहीं जागता और उत्तराधिकार का प्रश्न भी नहीं उदित होता।
यदि दुर्योधन में हठ्वादिता नहीं होती तो भी यह युद्ध टाला जा सकता था।

किन्तु सबके मूल में मेरे विचार से उस धूर्त दाषराज की शर्त ही है जिसके कारण कुरूवंश का वास्तविक अन्त भीष्म के साथ ही हो गया था। उसके बाद के दोनों कुमार व्यासजी से उत्पन्न थे।
आनन्द चतुर्वेदी (नन्दा )
आनन्द ही आनन्द 🙏🌹
राधे- राधे 🍁🍁🍁

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Harshit chaturvedi