21 March 2022

ऋतुराज बसंत ऋतु के छा जाने पर पृथ्वी में नए प्राणो

ऋतुराज बसंत 

ऋतुराज बसंत ऋतु के छा जाने पर पृथ्वी में नए प्राणो


बसंत ऋतु के छा जाने पर प्रकृति षोडशी, कल्याणी व सुमधुर रूप लिए अठखेलियाँ दिखलाती, कहीं कलिका बन कर मुस्कुराती है तो कहीं आम्र मंजिरी बनी खिल-खिल कर हँसती है.और कहीं रसाल ताल तड़ागों में कमलिनी बनी वसंती छटा बिखेरती काले भ्रमर के संग केलि करती जान पड़ती है. 

 

बसंत ऋतु के छा जाने पर पृथ्वी में नए प्राणो का संचार होता है. ब्रृज भूमि में गोपी दल, अपने सखा श्री कृष्ण से मिलने उतावला-सा निकल पड़ता है. श्री रसेश्वरी राधा रानी अपने मोहन से ऐसी मधुरिम ऋतु में कब तक नाराज़ रह सकती है? प्रभु की लीला वेनु की तान बनी, कदंब के पीले, गोल-गोल फूलों से पराग उड़ती हुई, गऊधन को पुचकारती हुई, ब्रज भूमि को पावन करती हुई, स्वर-गंगा लहरी समान, जन-जन को पुण्यातिरेक का आनंदानुभव करवाने लगती है.

ऐसे अवसर पर, वृंदा नामक गोपी के मुख से परम भगवत श्री परमानंद दास का काव्य मुखरित हो उठता है. 

 

"फिर पछतायेगी हो राधा, 

कित ते, कित हरि, कित ये औसर, करत-प्रेम-रस-बाधा

बहुर गोपल भेख कब धरि हैं, कब इन कुंजन, बसि हैं

यह जड़ता तेरे जिये उपजी, चतुर नार सुनि हँसी हैं

रसिक गोपाल सुनत सुख उपज्यें आगम, निगम पुकारै,

"परमानन्द" स्वामी पै आवत, को ये नीति विचारै"

 

गोपी के ठिठोली भरे वचन सुन, राधाजी, अपने प्राणेश्वर, श्री कृष्ण की और अपने कुमकुम रचित चरण कमल लिए,स्वर्ण-नुपूरों को छनकाती हुईं चल पड़ती हैं! वसंत ऋतु पूर्ण काम कला की जीवंत आकृति धरे, चंपक के फूल-सी आभा बिखेरती राधा जी के गौर व कोमल अंगों से सुगंधित हो कर, वृंदावन के निकुंजों में रस प्रवाहित करने लगती है. लाल व नीले कमल के खिले हुये पुष्पों पर काले-काले भँवरे सप्त-सुरों से गुंजार के साथ आनंद व उल्लास की प्रेम-वर्षा करते हुए रसिक जनों के उमंग को चरम सीमा पर ले जाने में सफल होने लगते हैं.

 

"आई ऋतु चहुँ-दिसि, फूले द्रुम-कानन, कोकिला समूह मिलि गावत वसंत ही,

मधुप गुंजरत मिलत सप्त-सुर भयो है हुलस, तन-मन सब जंत ही

मुदित रसिक जन, उमंग भरे हैं, नही पावत मन्मथ सुख अंत ही,

"कुंभन-दास" स्वामिनी बेगि चलि, यह समय मिलि गिरिधर नव कंत ही"

 

ऋतु राज वसंत के आगमन से, प्रकृति अपने धर्म व कर्म का निर्वाह करती है. पेड़ की नर्म, हरी-हरी पत्तियाँ, रस भरे पके फलों की प्रतीक्षा में सक्रिय हैं. दिवस कोमल धूप से रंजित गुलाबी आभा बिखेर रहा है तो रात्रि, स्वच्छ, शीतल चाँदनी के आँचल में नदी, सरोवर पर चमक उठती है. प्रेमी युगुलों के हृदय पर अब कामदेव, अनंग का एकचक्र अधिपत्य स्थापित हो उठा है. वसंत ऋतु से आँदोलित रस प्रवाह,वसंत पंचमी का यह भीना-भीना, मादक, मधुर उत्सव, 

 

"आयौ ऋतु-राज साज, पंचमी वसंत आज,

मोरे द्रुप अति, अनूप, अंब रहे फूली,

बेली पटपीत माल, सेत-पीत कुसुम लाल,

उडवत सब श्याम-भाम, भ्रमर रहे झूली

रजनी अति भई स्वच्छ, सरिता सब विमल पच्छ,

उडगन पत अति अकास, बरखत रस मूली

बजत आवत उपंग, बंसुरी मृदंग चंग,

यह सुख सब " छीत" निरखि इच्छा अनुकूली"

 

प्रकृति नूतन रूप संजोये, प्रसन्न है सब कुछ नया लग रहा है कालिंदी के किनारे नवीन सृष्टि की रचना, सुलभ हुई है

 

"नवल वसंत, नवल वृंदावन, नवल ही फूले फूल

नवल ही कान्हा, नवल सब गोपी, नृत्यत एक ही तूल

नवल ही साख, जवाह, कुमकुमा, नवल ही वसन अमूल

नवल ही छींट बनी केसर की, भेंटत मनमथ शूल

नवल गुलाल उड़े रंग बांका, नवल पवन के झूल

नवल ही बाजे बाजैं, "श्री भट" कालिंदी के कूल

नव किशोर, नव नगरी, नव सब सोंज अरू साज

नव वृंदावन, नव कुसुम, नव वसंत ऋतु-राज"




आज सो व्रज में गुलाल सो होरी को उत्सब प्रारम्भ  होवे 

वसंत पंचमी की सभी को खूब खूब बधाई 


जय यमुना मैया की !

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Harshit chaturvedi