इनके समय ही ब्रजलोक में सप्त व्याहृति रूप गायत्री के सात लोकों की स्थापना हुई
"तत्र भूरादयो लोका भुवि माथुर मंडलम्,
अत्रै व ब्रजभूमि सा यन् तत्वं सुगोपितम्।
तेनात्रत्रिविद्या लोका स्थिता पूर्वं न संशय।।
अर्थात इस माथुर मण्डल में भू भव स्व मह:जन तप सत्यम् सातदेवलोक प्रतिष्ठित हैं, इसी माथुर मण्डल के अन्तर्गत वह ब्रजभूमि है, जो देवों के गोचारण का क्षेत्र है, तथा जहाँ ब्रह्म का परमगूढ़ तत्व सुरक्षित है। इसी स्थिति के कारण प्राचीन समय से देवों के तीन लोक यहीं स्थिति रहे हैं, इसमें कुछ भी संशय नहीं है।
इसी कारण से महर्षि वेदव्यास ने मथुरा को
"आद्य" भगवत स्थानं यत्पुण्यं हरिमेधस:
अर्थात मथुरा भगवान का सर्वप्रथम आद्यस्थान है, जो हरिमेधा ऋषि का पुण्य क्षेत्र है तथा
"माथुरा परत्मानो मापुरा: परमाशिष:"
अर्थात माथुर ब्राह्माण ही परमात्मा हैं और इनका आशीर्वाद ही परम सिद्धिप्रद फल देने वाला है। ऐसा दृढ़ता और विश्वास के साथ प्रतिपादित किया है। गायत्री गोप कन्या का लोक ब्रज का गांठौली बन तथा मार्तण्ड सूर्य का लोक टौड़घनौ वन है।
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Harshit chaturvedi