ज्ञात स्रोतों के अनुसार मथुरा के ऊपर लगभग ३२ बार आक्रमण हुए हे प्रतेक आक्रमण का उद्दस्य हत्या लुट धर्मांतरण आदि के माध्यम से भारतीय सस्कृति को नस्त करना था सन १९४३ ई. में याबं बादशाह अहमदशाह अब्द्स्ती ने मथुरा पर आक्रमण किया नगला पयसा के ठाकुर मथुरानाथ जी का मंदिर था !
जिसमे मदुसुदन जी के अपने इष्ट देव के सबा में जीबन ब्य्तित करते थे तथा चतुर्वेदी भाईयो को दिशा प्रदान करते थे आक्र्न्तो ने इस मंदिर को नष्ट कर दिया मदुसुदन जी का पूरा परिवार ठकुर जी के चरणों की रछा करते हुए समर्पित हो गये उनके दो पुत्र मुकुट मीणा जी था जुगल किशोर जी शेष थे तथा जुगल किशोर जी के पुत्र बलदेव जी शिशु थे
और उनके साथ थे और यमुना जी के तट पर आगये मुकुट मीणा जी महराज का पद " ब्रज नव तरुण कदम्ब मुकुट मीणा शाम आज वाकी" पद का ज्ञान करते हुए खा जाता हे इनका शीश कट कट धड से होने पर भी इन पद का गान करता रहा था !
पद पूर्ण होने पर गणेश टीले के नीचे प्रभु चरणों को समर्पित हुआ यह भी इनकी पूर्वज स्थली बिध्मान ह इसके पश्चात् जुगल किशोर जी मथुरा नात जी के सात बेचबा गाव फर्क बाद के सिकंदर पुत्र मडू आदि स्थानों पर रहे मुकुट मीणा जी पारी बार के कुछ सदस्य भी बचे बचाते आकर रहने लगे बर्तमान में बलदेव जी का परिबार हाथरस था
मुकुट मीणा जी का परिवार मडू में रहता हे बलदेव जी के पुत्र गोप जी के बंश बिष्णु द्दत जी मथुरा गया लाल जी के बंश दुआरिका नाथ जी अयोध्या नाथ जी तथा चिमन जी के वंश हाथरस में बिद्या तप आदि सीबा मद्यमो से इस बंश का नाम उदित किया
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Harshit chaturvedi