रतन कुण्ड स्थित श्री पीठ का संछिप्त इतिहास
श्री कृष्ण की लीला ब्रज्स्थल मथुरा में माथुर मुनीसो में तांत्रिक शाक्त परम्परा का सूत्रपात सर्वप्रथम रतन कुण्ड स्थित "श्री" पीठ से हे माना जा सकता हे ! इस परिवार में अनेक इसी बिभुतिया उत्पन हुई हे !
जिन्होंने अपने तेज तपस्या और त्याग से अपने परिवार एवं माथुर समाज को गोर्वान्ति किया हे !
इस पीठ के संस्थापक सर्वप्रथम सिद्ध पुराण सर्वशास्त्र वेदान्त "श्री" शोडषी विधा अभिसिक्त श्री १०८ गंगाराम जी उपनाम श्री धधल जी पेरगिक हुए जो त्याग की महान मूर्ति थे !
कहा जाता हे कि रीमा नरेश महाराज व्रशिंह देव ने साडे तीन मन सोना का तुला दान देते हुए आपसे अभिमान युक्त ये शब्द खे कि एसा तुम्हे दान देने वाला न मेला होगा !
इतना कहने पर आपने उत्तर देते हुए कहा कि एसात्याग वाला ब्रह्मण भी आपको न मेला होगा ! कह कर सर्व दान त्याग कर दिया !
उसका यह फल निकला राजा रीमा जाते जाते मार्ग में ही कोढ़ी होगया ! जव राजा को ज्ञान हुआ तो वह उनकी सरण में आया एवं उनके आदेशाअनुसार वह सतना से रीमा २० कोस पैदल गया और आप सवारी पर उसके साथ गये एवं वहा जाकर आपने २४ घंटे में श्री मद्दभागावत की कथा सुनकर एवं तीन दिन कए अंदर अपनी श्री विधा से राजा के कोढी का निवारण कर देया जिसके परिणाम स्वरूप राजा ने उन्हें दो गाव भेट किये जो आज भी उनकी सतति पर प्राप्त हे !
आप का त्याग स्र्मती स्तम्भ आज भी विश्राम घाट की तुला पर लिखित रूप से विधमान हे !
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Harshit chaturvedi