यजुर्वेद में वर्णित है नवग्रहों के सुंदर मंत्र
वैदिक काल से ग्रहों की अनुकूलता के प्रयास किए जाते रहे हैं। यजुर्वेद में 9 ग्रहों की प्रसन्नता के लिए उनका आह्वान किया गया है। यह मंत्र चमत्कारी रूप से प्रभावशाली हैं। प्रस्तुत है नवग्रहों के लिए विलक्षण वैदिक मंत्र-
सूर्य - ॐ आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्नमृतं मर्त्यं च।
हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् (यजु. 33। 43, 34। 31)
चन्द्र - ॐ इमं देवा असपत्नं सुवध्यं महते क्षत्राय महते ज्यैष्ठ्याय महते जानराज्यायेन्द्रस्येन्द्रियाय। इमममुष्य पुत्रममुष्ये पुत्रमस्यै विश एष वोऽमी राजा सोमोऽस्माकं ब्राह्मणानां राजा।। (यजु. 10। 18)
मंगल - ॐ अग्निमूर्धा दिव: ककुत्पति: पृथिव्या अयम्। अपां रेतां सि जिन्वति।। (यजु. 3।12)
बुध - ॐ उद्बुध्यस्वाग्ने प्रति जागृहि त्वमिष्टापूर्ते सं सृजेधामयं च।
अस्मिन्त्सधस्थे अध्युत्तरस्मिन् विश्वे देवा यशमानश्च सीदत।। (यजु. 15।54)
गुरु - ॐ बृहस्पते अति यदर्यो अर्हाद् द्युमद्विभाति क्रतुमज्जनेषु।
यद्दीदयच्छवस ऋतुप्रजात तदस्मासु द्रविणं धेहि चित्रम्।। (यजु. 26।3)
शुक्र - ॐ अन्नात्परिस्त्रुतो रसं ब्रह्मणा व्यपित्क्षत्रं पय: सोमं प्रजापति:।
ऋतेन सत्यमिन्द्रियं विपानं शुक्रमन्धस इन्द्रस्येन्द्रियमिदं पयोऽमृतं मधु।। (यजु. 19।75)
शनि - ॐ शं नो देवीरभिष्टय आपो भवन्तु पीतये। शं योरभि स्त्रवन्तु न:।। (यजु. 36।12)
राहु - ॐ कया नश्चित्र आ भुवदूती सदावृध: सखा। कया शचिष्ठया वृता।। (यजु. 36।4)
केतु - ॐ केतुं कृण्वन्नकेतवे पेशो मर्या अपेशसे। समुषद्भिरजायथा:।। (यजु. 29।37)
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Harshit chaturvedi