महाकाली
अपने भैरव महा-काल की छाती पर प्रत्यालीढ़ मुद्रा में खड़ी, घनघोर-रूपा महाशक्ति महा काली के नाम से विख्यात हैं। वास्तव में देवी महा-काली साक्षात महा-माया आदि शक्ति ही हैं; ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति से पूर्व सर्वत्र अंधकार ही अंधकार से उत्पन्न शक्ति! आद्या शक्ति या आदि शक्ति काली नाम से विख्यात हैं। अंधकार से जन्मा होने के कारण देवी काले वर्ण वाली तथा तामसी गुण सम्पन्न हैं। इन्हीं की इच्छा शक्ति ने ही इस संपूर्ण चराचर जगत उत्पन्न किया हैं तथा समस्त शक्तियां प्रत्यक्ष तथा परोक्ष रूप से इन्हीं की नाना शक्तियां हैं। देवताओं द्वारा प्रताड़ित हो सहायतार्थ महामाया की स्तुति करने पर साक्षात आदि शक्ति ही पार्वती के शरीर से कौशिकी रूप में प्रकट हुई थीं।
प्रलय काल में देवी स्वयं मृत्यु के देवता महा-काल का भी भक्षण करने में समर्थ हैं; देखने में महा-शक्ति महाकाली अत्यंत भयानक एवं डरावनी हैं, असुर जो स्वभाव से ही दुष्ट थे उनके रक्त की धर बह युक्त हाल ही में कटे हुए मस्तकों की माला देवी धारण करती हैं। इनके दंत-पंक्ति अत्यंत विकराल हैं, मुंह से निकली हुई जिह्वा को देवी ने अपने भयानक दन्त पंक्ति से दबाये हुए हैं; अपने भैरव या स्वामी के छाती में देवी नग्न अवस्था में खड़ी हैं, कुछ-एक रूपों में देवी दैत्यों के कटे हुए हाथों की करधनी धारण करती हैं। देवी महा-काली चार भुजाओं से युक्त हैं; अपने दोनों बाएँ हाथों में खड़ग तथा दुष्ट दैत्य का हाल ही कटा हुआ सर धारण करती हैं जिससे रक्त की धार बह रहीं हो तथा बाएँ भुजाओं से सज्जनों को अभय तथा आशीर्वाद प्रदान करती हैं। इनके बिखरे हुए लम्बे काले केश हैं, जो अत्यंत भयानक प्रतीत होते हैं, जैसे कोई भयानक आँधी के काले विकराल बादल समूह हो। देवी तीन नेत्रों से युक्त हैं तथा बालक शव को देवी ने कुंडल रूप में अपने कान में धारण कर रखा हैं। देवी रक्त प्रिया तथा महा-श्मशान में वास करने वाली हैं, देवी ने ऐसा भयंकर रूप रक्तबीज के वध हेतु धारण किया था।
भगवान विष्णु जो इस चराचर जगत के पालन कर्ता एवं सत्व गुण सम्पन्न हैं, परन्तु उनके अन्तः कारण की संहारक शक्ति साक्षात् महा-काली ही हैं; जो नाना उपद्रवों में उनकी सहायता कर दैत्यों-राक्षसों का वध करती हैं। प्रकारांतर से देवी के दो भेद हैं एक दक्षिणा काली तथा द्वितीय महा-काली। अधिक जाने
0 comments:
Post a Comment
Harshit chaturvedi